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19 Jun 2024 · 1 min read

यार नहीं -गजल

**ग़ज़ल**

कभी गुलजार रहे , चमन में बहार नहीं,
खैरियत पूछने वाला, शहर में यार नहीं।

यु तो शानो शौकत की सजी हुई महफिलें ,
कोई दिल से मिले , ऐसा दिलदार नहीं।

मंजूर है फाकाकशी में जिंदगी गुजारना ,
अपना जमीर बेच दूँ , ये स्वीकार नहीं।

हवस की ओढ़े चादर दिखाते अपना नकली चेहरा ,
दिल की दौलत का यहाँ , खरीददार नहीं ।

बिक रहा झूठ भी सरेआम यहाँ ,
सच्चे जज़्बातों का, इकरार नहीं।

खंजर लिए खड़े हैं, यार भी राहों में ,
किस पे करें यकीं, कोई ऐतबार नहीं ।

‘असीमित’ दिल के अरमां, बहे आंसुओं में ,
ये आंसू भी सूखने को तैयार नहीं।
रचनाकार-डॉ मुकेश’असीमित’

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