त्रिविध ताप

त्रिविध ताप देखि,मनु मगु हारे
मिलत मधुबन नहिं,मन कारे कारे..
माया मोहित मन,संतप्त क्यों,
उबरे हैं जब सबहिं राम से,
आजा तू भी राम दुआरे…
त्रयताप कृत, तप्तजीवन मन हारे
दैहिक दैविक ताप हैं ,शूल तिहारे..
मन करम बचन, भज ले रघुवर को
स्वारथ हित भौतिक,तन ताप हमारे..
दैहिक ताप,ईर्ष्या-द्वेष घृणा से निकसे
धर्म लोप हो तो,दैविक ताप अति बरसे..
भौतिक ताप,लोभ सुख इच्छा का फल है
आत्मतत्त्व अतिरेक,परमानंद घट मनसे..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १७/०१/२०२५
माघ ,कृष्ण पक्ष,चतुर्थी, शुक्रवार
विक्रम संवत २०८१
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