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18 Mar 2025 · 1 min read

मिलावट(एकटा मैथिली व्यंग्य)

मिलावट (एकटा मैथिली व्यंग्य)

नजरि फेरियौ कनि,अप्पन चहु दिश,
बाजार मे कतहुँ नहि,मिलावट क’जांच दिखत,
सबतरि पसरल अछि मिलावट,
निरीक्षक नहि, झूठ आ सांच कहत..
सीएम पीएम के, होई छनि अबैया,
तब किट लेने, बस वो तैआर रहत..

आमजन क’ कोनो नञ छै कीमत,
सिस्टम भए गेल अछि ठूठ,
असली म नकली क’मिलाउ,
आओर सांच म’ झूठ..
एहि स ढेर – रास पैसा होयत,
कपार कहियौ नञ जायत रूइठ..

घी में अहां चर्बी,क मिलाउ,
आओर पीसल मिर्च मे ईंटक पाउडर,
हल्दी बुकनी में करिऔ रंगक मिलावट,
सदिखन भीड़ रहत अहांकऽ काउन्टर..
कोनो जोगाड़े अहां करु मिलावट ,
सात पुश्त तखन ,बैठले घर खायत..

तरबूज देख,आब रंग पकड़े नहिं तरबूज,
फकरा सब भेल,बण्टाढ़ार दिखत ,
रंग केमिकल क’ इंजेक्शन दिअउ नञ ,
लाले लाल बवाल दिखत..
फल तीमन सभ,कोनो रहल न आरिजनल,
छिलको पर मोम लगाएल भेटत..

मुनाफाखोरी लेल करु मिलावट ,
गांधीजी क’ सम्मान दिऔक ,
फूसि नहिं बाजब,फूसि नहिं देखब ,
आओर फूसि नहिं सुनब,क’ बखान दिऔक..
सिस्टम के करिऔ प्रणाम बस ,
संविधान बचाबी, अहां परान दिऔक..

मौलिक आओर स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १८/०३/२०२५
चैत्र ,कृष्ण पक्ष,चतुर्थी तिथि ,मंगलवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ईमेल पता – mk65ktr@gmail.com

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