गुलों में रंग खेला जा रहा है

सजल
दिलों में प्यार पाया जा रहा है,
गुलों में रंग खेला जा रहा है|(मतला)
रूहानी प्यार की गहराइयों से,
गुलिस्ताँ जंग लड़ता जा रहा है |(1)
दिलों की दूरियां रब से बढ़ा कर,
जमाना मुस्कुराता जा रहा है|(2)
गुलों में इश्क का दरिया बहा कर,
जमाना जख्म देता जा रहा है|(3)
दिलों के जख्म यूँ गहरे हुए कुछ,
दवा में डूबता सा जा रहा है |(4)
चमन गुलजार था सूना पड़ा है,
दिलों में खौफ बढ़ता जा रहा है|(5)
जहाँ में आग से कुछ तो बचा है,
गमे जज्बा मनाया जा रहा है|(6)
प्रिये! अब दिल तुम्हारा हो चुका है,
तुम्हीं पर” प्रेम” वारा जा रहा है|(7)(मकता)
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम “