तन्हाई से यारी थी

तन्हाई से यारी थी , अजब लाचारी थी।
आंखों में आंसू थे ,ग़मी खुशी पे भारी थी
ज़ख्म अपनों ने दिए, अश्क हमने पीए
रंग बदला अपनों ने ,चली दिल पे आरी थी।
ताल्लुक टूटते गये , और लोग रूठते गये
तहम्मुल कोई न बचा ,न कोई रिश्तेदारी ।थी
बात वफ़ा की करते थे ,अपना दम भरते थे।
गला घोंटते बीमार का ,कैसी तीमारदारी थी।
हर मुश्किल सह लेते, बात मन की कह लेते।
बेकाबू ज़ज्बात हुए,कैसे गई मति मारी थी।
सुरिंदर कौर