बड़ी लाचार करती है ये तन्हाई ,ये रुसबाई

बड़ी लाचार करती है ये तन्हाई ,ये रुसबाई
ये सोच के दिल को हमने बांधा नहीं कभी
समंदर को लांघने की हसरत थी दिल में
और दरिया को भी हमने लांघा नहीं कभी
✍️कवि दीपक सरल
बड़ी लाचार करती है ये तन्हाई ,ये रुसबाई
ये सोच के दिल को हमने बांधा नहीं कभी
समंदर को लांघने की हसरत थी दिल में
और दरिया को भी हमने लांघा नहीं कभी
✍️कवि दीपक सरल