ग़ज़ल

ज़माने भर की ख़ुशियों का वो वादा साथ करता था।
तेरे होने से मैं हूँ ,ये कहकर मुख़ातिब मुझको करता था।।
ज़मीं पर चांद तारे लाकर तेरा दामन को सजा दूंगा।
सुबह-शाम ये कहकर, मुख़ातिब मुझको करता था।।
मेरी तक़दीर हो जानाॅं कभी ना दूर तुम मुझसे हो जाना।
तिनके-सा टूट जाऊँगा, कहकर मुख़ातिब मुझको करता था।।
मेरी सांसे मेरी धड़कन तेरे साथ होने से चलती हैं।
तू बनके लहू रगों मे बहती है,ये कहकर मुख़ातिब मुझको करता था।।
मेरे नग़मे तेरे होंठों की हँसी देख कर गुनगुनाने लगते हैं।
हर साज़ जीवन का तेरे बिन आधुरा हैं, ये कहकर मुख़ातिब वो मुझको करता था।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”