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20 Mar 2024 · 1 min read

खोज सत्य की

आरंभिक मनुष्य का आई क्यू
काफ़ी कमज़ोर रहा होगा
तभी तो उसने प्राकृतिक सत्य की थाह में
अलौकिक असत्य सत्य अनेक गढ़ लिए

आंधी तूफान, सर्दी गर्मी, धूप छांव, सूखा बरसात, भूकंप आदि
तब अबूझ प्राकृतिक लीलाएं थी उसके लिए
उसकी सहज बुद्धि और समझ से परे
उसने इनके होने घटने में
किसी अजान अदृश्य सुप्रीम नियंता का हाथ माना
उस नियंता की उसने कोई सूरत और मूरत गढ़ ली
उसकी अपरिमित अजान शक्ति से भय खा
उसकी कृपा पाने और उसकी कुदृष्टि हटाने को

कालांतर में प्रकृति के कार्य कारण संबंध जब डिकोड हुए
तबतक बहुत से मनुष्य के आई क्यू समृद्ध हो चुके थे
इन्हीं में से कुछ चालाक लोगों ने
ईश्वर की सत्ता की झूठ और निस्सारता को भांप लिया
मगर इन लोगों ने ईश्वर की महिमा को अक्षुण्ण बनाए रखा
बल्कि इस महिमा को बढ़ा चढ़ा कर बताया
और ख़ुद को इस ईश्वर का दूत
उस तक पहुंचने का जरिया जताया
ऐसे ही बिचौलिए
पुजारी मुल्ला, ग्रंथी, फादर कहलाए

सत्य जबकि साफ़ अलग था, न ओझल था
बुद्ध, नीत्से, भगत सिंह और आम्बेडकर जैसों नास्तिकों ने
सहज सत्य का फिर से साक्षात्कार कराया।

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