एक नासूर हो ही रहा दूसरा ज़ख्म फिर खा लिया।
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
ये दुनिया भी हमें क्या ख़ूब जानती है,
हिंदी साहित्य की नई : सजल
मौत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*** अंकुर और अंकुरित मन.....!!! ***
बोले सब सर्दी पड़ी (हास्य कुंडलिया)
★लखनवी कृषि को दीपक का इंतजार★
'अस्त्तित्व मेरा हिन्दुस्तानी है'
औपचारिक हूं, वास्तविकता नहीं हूं