निरीक्षक
कक्ष के अंदर टहल रहा है,
बैच लगाए एक ऐसा शिक्षक,
नकलचियों को पकड़ने के लिए,
निगाहें गड़ाए हुए है निरीक्षक।
परीक्षा की घड़ी चल रही है,
व्यवस्था में भी अड़े हुए है,
डांट रहे है निरीक्षक उनको,
ताक झांक रहे है जो इधर उधर ।
कितने सख्त हो जाते है ये,
कितनी जिम्मेदारी से कार्य निभाते है,
शिक्षा का मूल्यांकन के औसर को,
सुदृढ़ और खास बनाते है।
खामोशी कितनी होती कक्षा में,
हाव भाव भी देखते है सबके,
अनुशासन से जुड़ते है सब,
निरीक्षक भी देते है दाद।
निरीक्षक का निरीक्षण अनमोल,
न्याय ,समानता,और सच पर दे जोर,
होता है फिर भविष्य का भोर,
सुनाते है विद्यार्थी अपने मेहनत का शोर।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।