आशियां टूटा है कि जाऊं किधर जाऊं में

आशियां टूटा है कि जाऊं किधर जाऊं में
जीने का शौंक नही जीते जी मर जाऊं में
दिल में जीने की तमन्ना न ही मर जाने की
इतना टूटा हूं कि छूने से बिखर जाऊं मे
नयनों नींद में नही दिल को चैन आए कहां
तेरा दर छोड़के अब जाऊं तो मैं जाऊं कहां
“कृष्णा”पागल हुआ जो याद तेरी जाती नही
आसरा टूटा गया रात अब बिताऊं में कहां
✍️कृष्णकांत गुर्जर