जीवन उत्सव है…

जीवन उत्सव है..
(एक गीत)
गठरियाँ सर पे उठाए हुए
निकल पड़ते हैं लोग,
सुबह की बेला में कर्मपथ पर
चल पड़ते हैं लोग…
सौंधी खुशबू मिट्टी को
सिर माथे पर लेकर ,
अपने हिस्से की किस्मत
बटोर लाने को,चल पड़ते हैं लोग..
गठरियाँ सर पे उठाए हुए..
उम्मीदों पर ही तो टिकी है
इस जीवन की डगर ,
काफ़िला साथ हो या फिर
तन्हा हो ये जीवन का सफर ,
हो जाता है कुछ इस तरह से ही
यहां जीवन का बसर,
जब स्मित मुस्कान लिए
कर्मपथ पर निकल पड़ते है लोग..
गठरियाँ सर पे उठाए हुए..
मखमली सेज पर सोने वालों
थके माँदे का बिस्तर तुम क्या जानो..?
सपनों में ही ख्वाहिश लिए फिरते हो
उनकी खुशियों का ठिकाना तुम क्या जानों..?
जरा उठ करके देखो तो
अपने चारों तरफ ,
जीवन उत्सव की तरह
कैसे जिया करते हैं लोग..
गठरियाँ सर पे उठाए हुए..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १३/०३/२०२५
फाल्गुन ,शुक्ल पक्ष,चतुर्दशी तिथि, वृहस्पतिवार
विक्रम संवत २०८१
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