नहीं है प्रीत यह प्रति

नहीं है प्रीत यह पराई, यह रौनक है घर की हमेशा।
मिलेगी इनसे खुशियां इतनी, होगी नहीं कभी निराशा।।
नहीं है प्रीत यह पराई———————।।
क्यों ऐसा तुम मानते हो, कि बेटी तो है धन पराया।
जायेगी कल दूसरे घर को, बनकर किसी का साया।।
तिमिर यह मन का निकालो, करो तुम इन पर भरोसा।
नहीं है प्रीत यह पराई————————।।
ये फूल तुम खिलने दो, कल महकेगा इनसे चमन।
होगी बहार इनसे जीवन में, मत करो इनका दमन।।
अपने लहू से इनको सींचो, मुकम्मल होगी हर आशा।
नहीं है प्रीत यह पराई———————-।।
दम है इनमें भी इतना, ये झुका सकती है आसमां।
देती नहीं कभी ये धोखा, ये करती हैं पूरे अरमां।।
समझो नहीं इनको बेगाना, ये वफ़ा है औरों की अपेक्षा।
नहीं है प्रीत यह पराई————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)