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17 Jul 2024 · 1 min read

हमने गुजारी ज़िंदगी है तीरगी के साथ

हमने गुजारी ज़िंदगी है तीरगी के साथ
बनती हमारी है नहीं इस रोशनी के साथ

सोची नहीं थी बात ये सपने में भी कभी
कट जाएगा सफ़र खुशी से अजनबी के साथ

बस हाथ थाम लीजिए कसकर हमारा आप
बह जाएं हम न वक़्त की बहती नदी के साथ

भाने लगी है इतनी हमें आजकल तो ये
हर वक़्त रहने हम लगे हैं शायरी के साथ

मेरी नज़र में बढ़ गई इज्ज़त है आपकी
की हैं कुबूल खूबियाँ मुझ में कमी के साथ

आती नहीं है पास चली जाती दूर से
क्यों बैर है खुशी का मेरी ज़िंदगी के साथ

बिन चाँद के लगे है गगन भी उदास सा
आता मज़ा तो रात का है चाँदनी के साथ

ये आप ही हैं जिनसे मिलाकर कदम चले
जोड़ी न आज तक बनी अपनी किसी के साथ

श्रृंगार की भी तो हदें होती हैं ‘अर्चना’
आँखों को भाता है ये मगर सादगी के साथ

डॉ. अर्चना गुप्ता

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