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15 Jun 2016 · 1 min read

रिक्ति (लघुकथा

घड़ियाली आंसू बहाना अब बंद करो, शोक सभा समाप्त हो गई है, अब नाटक करने की तुम्हें कोई जरुरत नहीं है, झल्लाते हुए सुगन्धा ने अपने पति सोमेश से कहा।
“नाटक, तुम्हें नाटक लग रहा है, तुम्हें दिखाई नहीं देता मैं सचमुच दुखी और परेशान हूँ, दुख मुझे इस बात का नहीं है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे, अरे उनके होने न होने से क्या फर्क पड़ता है, दुःख तो मुझे इस बात का है कि उनका पेंशन जो हर महीने मिल जाता था अब बंद हो जायेगा, उसी से बच्चों की पढ़ाई का और घर का सारा खर्च निकल जाता था, इतनी बड़ी रिक्ति की भरपाई अब कैसे होगी ? सोमेश ने खिन्न मन से अपनी बात पूरी की,
अब तो सुगंधा के माथे पर भी दुख की लकीरें खींच गई।

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