बदलता समाज, बदलती प्राथमिकताएं: क्या मां की शिक्षा सही दिशा में जा रही है?(अभिलेश श्रीभारती)

“मां बच्चों की सबसे बड़ी गुरु होती है”—यह कथन सदियों से सत्य माना जाता रहा है। मां की गोद ही पहला विद्यालय होती है, जहां संस्कार, नैतिकता और जीवन की मूलभूत शिक्षा प्राप्त होती है। किंतु आज की सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए यह सवाल उठता है—क्या आधुनिक शिक्षा और परिवेश ने मां की इस भूमिका को प्रभावित किया है?
समाज की इस बदलते परिवेश और प्राथमिकता से में काफी चिंतित हूं इसलिए मैं वर्तमान सामाजिक परिवेश से यह प्रश्न करने का साहस कर रहा हूं की क्या शिक्षा हमें सही दिशा में ले जा रही है? अब आप मुझसे पूछेंगे या कैसी की बेहूदा सवाल है? और यह सवाल जायज है लिए हम इसे ऐसे समझते हैं।
बीते समय में अधिकतर माताएं औपचारिक शिक्षा से वंचित थीं, लेकिन उनके अनुभव, संस्कार और पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा ने बच्चों को योग्य और संस्कारित नागरिक बनाया, जिससे वे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और समाज के अन्य प्रतिष्ठित वर्गों में पहुंचे। आज की मां शिक्षित और जागरूक है, फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि आज के बच्चे डॉक्टर-इंजीनियर बनने के बजाय सोशल मीडिया पर “नचनिया” बनते दिख रहे हैं? इसका उत्तर केवल मां की शिक्षा से नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश से जुड़ा है। सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने से बच्चे खेल-कूद, अध्ययन और सांस्कृतिक गतिविधियों से दूर हो गए हैं, मोबाइल और इंटरनेट उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं, और मां-बाप की व्यस्त जीवनशैली उन्हें स्क्रीन में उलझे रहने देती है। भौतिकतावाद और त्वरित प्रसिद्धि की चाह ने मेहनत और लंबी शिक्षा प्रक्रिया से सफलता प्राप्त करने की भावना को कमजोर कर दिया है, सोशल मीडिया ने प्रसिद्धि को आसान बना दिया है, जिससे बच्चे अध्ययन और करियर के बजाय ऑनलाइन मनोरंजन में अधिक रुचि ले रहे हैं। पहले संयुक्त परिवारों में दादा-दादी, चाचा-चाची का मार्गदर्शन बच्चों को सही दिशा दिखाता था, अब एकल परिवारों में मां-बाप दोनों नौकरी में व्यस्त हैं, जिससे बच्चों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। शिक्षित मां निश्चित रूप से बच्चों को सही दिशा में ले जा सकती है, बशर्ते कि वह उनके डिजिटल उपभोग पर ध्यान दे, उन्हें आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाए। मां की शिक्षा तभी सार्थक होगी जब वह आधुनिक ज्ञान के साथ पारंपरिक मूल्यों का संतुलन बनाए रखे। मां की भूमिका आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी, लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश ने चुनौतियां बढ़ा दी हैं। शिक्षा के साथ-साथ मां को यह भी देखना होगा कि उसके बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं। यदि वह सही मार्गदर्शन दे, तो बच्चे केवल सोशल मीडिया के नचनिया नहीं बनेंगे, बल्कि भविष्य के डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और देश के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। समाज को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है—शिक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन सही दिशा भी उतनी ही आवश्यक है!
नोट: यह लेखक के अपने निजी विचार है।
~ अभिलेश श्रीभारती ~
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक