नारी तू मानवता का आधार
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: “बेटी”
मानवता की सृजक शतरूपा
लक्ष्मी शारदा शिवा स्वरूपा
तू गार्गी मैत्रेयी लोपामुद्रा
ममतामयी अतिपावनी भद्रा
मानव को करती संस्कारित
क्षीर गुणों को करती धारित
बेटी स्वर्ण-मणि-सुरभि संयोग
मानवता का सकल आलोक
सरस सलिल अमृतधरा अमृतवरा
बेटी से जग सारा उत्स-आनंद भरा
परम पावनी जगत संचालक
प्रभाकरी सकल लोक पालक
परम शक्ति चरण की अमृत बिंदु
प्रवाहमान प्राण-सुधा पियुष-सिंधु
मानवता के सकल-क्लेश हारी,
सृजन शक्तिधरा परम विनीत।
तुमसे जीवन सरोकार सकल,
तुमसे बनती धरा स्वर्ग पुनीत।।
डॉ. रवींद्र सोनवाने बालाघाट
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: ///नारी चरण///
किस लौकिक अलौकिक मधु का,
तुम करती रहती हो आस्वादन।
दुनिया को राह बताने वाली,
परम शक्ति ही आयी नारी बन।।
दुनिया चाहे संघर्ष करे ,
चाहे डाले विषशाला में।
हर युग में संदेश सुनाती ,
नारी है चिन्मय और पावन।।
आत्म केतु का रखने सम्मान,
तुम करती रहती नित संघर्षण।
विश्व श्रृंखला की कड़ियों में,
तुम सदा जोड़ती हो नंदनवन।।
चिर युग से सागर मंथन का,
जग सुनता है तुमसे गायन।
तेरे मुख से है सदा गूंजता,
मानव कर तू सागर मंथन।।
नारी तुम तो मधुता हो जग की,
और देवत्व का अविरत स्त्रोत।
शक्ति स्वरूपा नारी तुममें है
अनंत गरिमा प्रभुता की लोच।।
शांति शक्ति के द्वार खड़ी है,
बाट जोहती सदा विजन की।
तेरी चरण धूल का तिलक करें,
भई प्रगट आस अपनेपन की।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: ///प्रणय-प्राण : नारी///
पति पत्नी का प्रमुदित संसार,
जहां परस्पर भरा स्नेह अपार।
नहीं वह नहीं है दृग दृष्टि जाल,
प्राण प्रणय से बंधा अंतरभाल।।
जीवन ऐसी संचित निधी,
जिसके हम संचायक हैं।
हृदयतल से उठते गीतों के,
हम ही दोनों सह गायक हैं।।
तुम हो मेरे प्राणों के प्राण,
क्या दूं मैं इस पर आख्यान।
मैं तुम्हारी सह गामिनी हूं,
ऐसा है अपना जीवन यान।।
तीक्ष्ण शरों से कर संधान,
मिटा देते हम भ्रम अज्ञान।
पुष्पित कर इन सांसों को,
करें अमिय सुधा का पान।।
करें सदा नवल विहार, अमृत मय हो अपना प्यार।
नारी मैं तुम मेरे पति हो, नारी नहीं कुटिल तलवार।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: ///नारी हृदय प्रसाद///
हे नारी मातृस्वरूपा !
सब कुछ तेरा ही हृदय प्रसाद!!
तू संस्कृति की सौंदर्य तूलिका,
गृहस्थ धर्म की प्राण।
परम देवत्व पूर्ण शक्ति तू ही,
तू ही विश्व-युग निर्माण।।
काल जगत के संवेदन संयोजन,
तू ही जगती का वियोग विषाद।
इस जगती का प्रगति व विलास,
हे नारी! यह तेरा ही हृदय प्रसाद।।
तू ही प्राणों का स्पंदन,
तू ही प्राणों का अवलंबन,
तू ही नीरव प्रेरणा अनजान।
म्लान सहज अम्लान विशद,
अहे विश्व अमिय वरदान ,
तू ही विशाल विराट महान।।
सत संघर्ष असत विकर्ष,
उत्साह प्रवण नव घन,
तू ही कुंडलिनी एकाकार।
अहे रहस्यमयी विभावरी,
तू अनहद का अंतर गान,
विश्व मोहिनी नव रम्यहार।।
तू ही त्रिगुण जगत में ब्रह्मनाद ।
विश्व का उत्कर्ष पतन व प्रमाद।।
हे नारी! यह तेरा ही हृदय प्रसाद।।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: [09/02, 5:04 pm] dr rk sonwane: //तुम नारी//
नारी तुम
नारायणी ऋतंभरा
नमन तुम्हें
तुम कल्याणी श्रीधरा
परालोक से आने वाली ज्योति
आकार लेती है न!
तुम्हारी ही कोख में
यह ब्रह्मा की सृजन शक्ति का अंशावतरण है।।
सत्य ही सखी
अभिभूत हुआ
तुम्हारे इस परा और लोकोत्तर रूप को देख
आंखें झुकीऔर हृदय भर आया
नम्र मुद्रा में
कितना पवित्र और मधुर है
तुम्हारा अपरा स्वरूप
परम मोहक और आनंददायी।।
दिव्यलोक से आने वाली
वे दिव्य आत्माएं
जन्म लेती हैं संसार में
तुममें समाहित होकर
संसार के संचनालनार्थ
तुम्हीं से ही तो जीवन पाते हैं
और तुम्हारे ही सहयोग से
लीला करते हैं संसार के रंग मंच पर।।
उनके साथ हर रूप में
तुम ही तो होती हो
तुम्हारा सृजन तुमसे जन्म लेकर
तुमसे ही तुष्टि पाता है आधार पाकर
फिर तुमसे ही संबल पाता है
तुम्हारी उर्वरता उसे साकारती है
और वह धन्य होता है
अपने को कर्ता और सृजेता समझ।।
तुम्हारा ही तो आंचल
देता है उसे सुख शांति और समिधा
अंततः तुम्हारी ही गोद में शीश धरे
यात्रा करता है फिर से
उसी क्रम को दोहराने के लिए
तुम ही तो होती हो उनके साथ
पीड़ा में और दुख में आनंद में और सुख में
विपत्ति में संपत्ति सी।।
यह क्रम तुमने ही सिखलाया है
समर्पित हो विजय दान देकर
सृजनकर्तृ होकर भी अहंकार शून्य
कितनी प्रेरणा है सुलभे!
तुमने दिया है अधिकार
अनवरत कर्तव्य पथ पर चलकर
मानवता के प्रति श्रद्धा और विश्वास का मूल
तुमसे ही प्रतिष्ठित होता है,हे नारी!।।
डॉ. रवीन्द्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (म.प्र.)
मौलिक व स्वरचित रचना।
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: ///नारी ! तू महीयसी///
नारी ! तू महीयसी अंशु सगोचर,
मानव जीवन की पुण्य सुधा हो।
प्रकृति के जीवन का मंथन,
ब्रह्म रूप तुम उत्कृष्ट विधा हो।।
तेरे जीवन का हर पल पल,
है कितना सुरुचि और ललाम।
तुम तो सचमुच दैवीय अवतरण ,
हो इस धरा पर परमधाम अनाम।।
मधु यज्ञ से निर्मित तुम,
मधुता का सागर अपार।
सार सार तू श्रेष्ठ गुणों का,
प्रकृति में संचित पुण्यागार ।।
सुरम्य विभा मानव जीवन की,
अनंत नेह मय परम मातृत्व।
सूक्ष्म विराट सबों से पोषित,
परम पुण्यमयी तू अरुण तत्व।।
जगत वत्सला प्राण प्रभा,
तू मानव जीवन का आधार।
मानवता संसार सभी कुछ,
है तेरा मधुर जीवन विहार।।
हे पुण्य सृष्टि तुम ब्रह्मसार।।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: ///नारी हृदय प्रसाद///
हे नारी मातृस्वरूपा !
सब कुछ तेरा ही हृदय प्रसाद!!
तू संस्कृति की सौंदर्य तूलिका,
गृहस्थ धर्म की प्राण।
परम देवत्व पूर्ण शक्ति तू ही,
तू ही विश्व-युग निर्माण।।
काल जगत के संवेदन संयोजन,
तू ही जगती का वियोग विषाद।
इस जगती का प्रगति व विलास,
हे नारी! यह तेरा ही हृदय प्रसाद।।
तू ही प्राणों का स्पंदन,
तू ही प्राणों का अवलंबन,
तू ही नीरव प्रेरणा अनजान।
म्लान सहज अम्लान विशद,
अहे विश्व अमिय वरदान ,
तू ही विशाल विराट महान।।
सत संघर्ष असत विकर्ष,
उत्साह प्रवण नव घन,
तू ही कुंडलिनी एकाकार।
अहे रहस्यमयी विभावरी,
तू अनहद का अंतर गान,
विश्व मोहिनी नव रम्यहार।।
तू ही त्रिगुण जगत में ब्रह्मनाद ।
विश्व का उत्कर्ष पतन व प्रमाद।।
हे नारी! यह तेरा ही हृदय प्रसाद।।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
[08/03, 1:06 pm] dr rk sonwane: अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस के अवसर पर नारी चरणों में वंदन स्वरूप रचनाएं प्रेषित हैं। नारी की महिमा और नारी संस्कृति का आधार। आपको रचनाएं अच्छी लगेगी। साधुवाद।