“उदासी भी आज उदास है”
उदासी भी आज उदास है
उदासी भी आज उदास है,
शब्दों में खोई, बेआवाज़ है।
चुपचाप कोने में बैठी हुई,
खुद से ही रूठी, हताश है।
संगीत भी बेसुरा सा लगे,
हवा में न गूँजे कोई राग है,
रौशनी भी बुझी-बुझी सी,
चाँदनी भी लगे विराग है।
कल जो आँसू संग रहती थी,
वो भी अब आँखों से दूर है,
बेदर्द सी लगती खामोशी,
हर पल जैसे मजबूर है।
सपनों की राहें सूनी-सूनी,
आशाओं का अंत दिखाई दे,
बंद दरवाजों के उस पार भी,
खुद से मुलाकात नहीं हो पाए।
पर शायद कहीं दूर कहीं,
कोई किरण मुस्काएगी,
इस उदासी के गहरे साये में,
कोई उम्मीद जगाएगी।
फिर कोई गीत बजेगा धीमे,
फिर कोई रंग खिलेगा,
उदासी भी जो उदास बैठी थी,
फिर हौले से मुस्कुराएगी।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”