गजल (मुद्दतों के बाद में)

गज़ल (मुद्दतों के बाद में)
तन्हा गुजरा उस गली से,
मुद्दतों के बाद में।
जिस्म मंजिल की तरफ था,
रूह उसकी याद में।।
वो सजर से देखती है,
लग रहा है हू-बा-हू।
ऐसे ही वो देखती थी,
हर सगल के बाद में।।
चुगलियां करती दीवारें,
शिकवे शिकायत सीखचे।
फिर लौटे तुम क्यों नही,
उस गुफ़्तगू के बाद में।।
ले रहा दिल सिसकियां,
पी रहा हूँ घूँट-घूँ।
कैसे कहूँ न जी सका,
उस सुखन के बाद में।।
उसके आँचल से लिपटना
जन्नतें कुर्बान थीं
दौलतों की बेशुमारी,
फिर भी हूँ बर्बाद में।।
मिल गयी अंजुम पुरानी,
मैं इबादत कर रहा हूँ।
कितनी मंजिल कट गई,
इस हसीं इक ख्वाव में।।
®दुष्यंत ‘बाबा’
मानसरोवर, मुरादाबाद।