बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
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मकर संक्रांति होते ही प्रकृति में ऊर्जा का संचार होने लगता है। पेड़, पौधे, बिलों में सुप्त जीव जगत अंगड़ाई लेने लगते हैं।माघ मास लगते ही त्यौहारों का स्वरूप बदलने लगता है। लोग उल्लासित हो शिशिर ऋतु की कंपकंपाने वाली शीत से बाहर निकल आते हैं।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी अथवा श्री पंचमी भी कहते हैं। मां सरस्वती की वीणा झंकृत हो मन और प्रकृति को संचारित कर देती हैं।
मां सरस्वती श्वेत वस्त्र धारणी हैं; उनका वाहन हंस है।
अब इन प्रतीकों को समझने का प्रयास करते हैं।
सरस्वती अर्थात सरस ,जो हर रस से भरा हुआ है। श्वेत रंग में प्रकृति का प्रत्येक रंग समाहित हो जाता है। हंस सबसे कोमल और अहिंसक जीव है।यह दूध का दूध और पानी को पानी कर देते हैं। दूसरे शब्दों में सत्य और असत्य को अलग-अलग करके यथार्थ को सामने लाता है।
वीणा संगीत का आधार है।मन में सकारात्मक तरंगें उत्पन करती है और व्यक्ति संवेदनशील होता है।
इन्हें ज्ञान और बुद्धि की देवी भी कहा जाता है।मन एकाग्र होकर चिंतन मनन करके अपने धर्म को समझने का काम भी करतीं हैं। इसलिए जो शब्द हमारे मुंह से निकलता है उसे सरस्वती का वरदान कहते हैं और आपके मन का दर्पण होता है।
सारस्वत ब्राह्मण भी मां सरस्वती का प्रतिनिधित्व करते हैं।आज तो पता नहीं परंतु पहले पाठ पूजा और वेदाध्ययन,गीत संगीत से परिपूर्ण होते थे सारस्वत ब्राह्मण।
इस दिन पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा है जो कि सरसों, सूरजमुखी के फूल,केसर आदि फूलों का प्रतीक है।
अभी आप केसर की खीर बनाएं और बसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्रसाद को ग्रहण करें और उत्सव की गहनता समझें।
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राजेश ललित शर्मा