फूलों का बगीचा नदी के उस पार है।

फूलों का बगीचा नदी के उस पार है।
मांझी है ना कश्ती वहाँ जाना दुश्वार है।।
जुग्नुओं का बसेरा भंवरो की झनकार है।
तितलियों का रसपान करना हुआ दुश्वार है।।
डाली पे लगी हर कली फूल बनने को बेताब है।
कांटा ना कर दे घायल ये सोच कर जी दुश्वार है।। मधु गुप्ता “अपराजिता”