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22 Feb 2025 · 5 min read

बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -204 तला (तालाब)

[22/02, 1:48 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली बिसय तला
1
तला तलइयाँ नय बँदे, बँदे सैकरन बाँद।
भई तरक्की देश की, लगे चार ठउ चाँद।
2
तला तलइयाँ हैं जितै, उतइँ नहर खुदबात।
कल कल कल नहरें बहत, धानी धरा सुहात।
3
जो जन गहरे होत हैं, रहें तला की भाँत।
कोइ थाँह पावै नई, मन मसोस रै जात।
4
उमड घुमड बदरा उठे, वर्षा भइ घनघोर।
तला कुआँ पोखर भरे, दादुर करें किलोर।
5
तला गाँव की सान है, ऊ बिन गाँव न सोय।
पानी जाँ रोटी उतइँ, दुख सुख साथी होय।
रामानन्द पाठक नन्द
[22/02, 2:40 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे
विषय:- तला/तालाब
जा दुनियाॅं है इक तला,भ‌ई मगर आधीन।
चैन भजन और आस्था,ल‌इ दुष्टों नें छीन।।

तला तलैयां जुत गये, बना लये हैं खेत।
प्यासे प्रानी हींस रये,को‌उ खबर नहि लेत।।

सब‌इ तला रीते डरे, रय पानी खों झूॅंक।
“अनुरागी” कैसें मिटत,प्यास और जा भूॅंक।।

दुर्योधन जाकें लुको, बड़े तला के बीच।
भीमसेन ने हाॅंक द‌इ,दव उन्ना सौ फींच।।

अंधा अंधी मर गये, बड़े तला की पार।
राम लखन सीता सहित,वन में करत विचार।।
भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”
[22/02, 2:44 PM] Subhash Singhai Jatara: बुंदेली तला {*तालाब*}

ढ़ीमर मछली पालतइ , खोदत उतइँ मुरार |
भरौ रयै पानी तला , गातइ गीत मलार ‌||

सपरे हम खूबइ तला , खूब लगाई लोर |
डोड़ा पै चढ़कै उतइँ , भयँ है खूब विभोर ||

कमल खिलत है जब तला , कमलगटा भी होत |
सब खातइ हैं छील कैं , मजा आत है भोत ||

माटी भी नौनीं तला , करत खाद को काम |
कौस कात सब लोग हैं , खर्च होत ना दाम ||

बुड़की लैबें गय‌‌ तला , बचपन के दिन याद |
बै दिन अब गय है बिसर , लामी है तादाद ||

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~~~~~
[22/02, 3:35 PM] Rajeev Namdeo: बुंदेली दोहा बिषय- तला

#राना देखत अब तला,नईं सपरबे जात।
भरी रात है गंदगी,ऊपर तक उतरात।।

बचपन #राना याद है,सपरो है दिन रात।
कपड़ा धोयै है तला,सबसें साँसी कात।।

साफ रात ते सब तला,मछली घूमें तैर।
#राना अब रत मैल है,नईं सपरबौ खैर।।

बसकारें पानी बरस,भरत तला ते खूब।
करैं सिचाई खेत की,#राना थे मनसूब।।

बुंदेली देखत तला,चंदेलन की ‌‌ शान।
सुने इतै मशहूर सब,#राना है पहचान।।
*** दिनांक -22-2-2025
✍️ राजीव नामदेव”राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक-‘अनुश्रुति’त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
[22/02, 5:21 PM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा, बिषय ,,तला,,
**********************************
तला किनारेँ लोर रय , शिव शंकर भगवान ।
सती देख चिल्ला उठेँ , आव बचा लो प्रान ।।

तला सपरवे जब गयेँ , पवन पुत्र हनुमान ।
मगरी ने पकरेँ चरन , कालनेम दय प्रान ।।

पानी डूँबोँ नै बचो , गन्धारी को लाल ।
बीच तला सेँ काड़केँ , ल्याव मारवे काल ।।

घिस-घिस गोड़ेँ धो रहेँ , भीम तला मेँ आन ।
बर्बरीक रोकन लगो , लरेँ दोइँ बलवान ।।

कब्जा कर गेँतेँ तला , पिसिया बैदइँ जोत ।
कूरा-करकट पैल रय , जात पुरानी खोत ।।

बसकारेँ भर गय तला , गाँयँ मिदरियाँ राग ।
नचेँ मछरियाँ मोद मेँ , गय”प्रमोद”खुल भाग ।।
**************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[22/02, 8:07 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
बिषय- तला
(1) पैल पुराने आदनी,
कुआ तला खुदवाये।
ब्रजभूषण कितने भलें,
सबके कामे आये।।
(2) कुआ तला नरवा नदी,
अगर गाँव में होय।
काम चले निस्तार को,
कमी कबे ने कोय।।
(3) तला तलइयाँ अर कुआ,
बसकारे भर जात।
पानी के बरसे विना,
सूके ड़रे दिखात।।
(4) तला बड़ो भोपाल को,
दूर दूर मशहूर।
ब्रजभूषण मौका मिले,
देखो जाय जरूर।।
(5) रजवाड़े को तो समय,
तला खूब वनवाये।
चार पान सो बड़ बड़े,
टीकमगढ़ में पाये।।
ब्रजभूषण दुबे ब्रज बकस्वाहा।
[22/02, 9:29 PM] Taruna khare Jabalpur: ‘ तला’ शब्द पर दोहे

तला तलैया पूर खैं,बना लये घर बार।
गरमी मै पानी बिना,जीव फिरैं लाचार।।

तला किनारे है बनो,मंदिर बड़ो बिसाल।
शिवरात्री में भरत है,मेला हर इक साल।।

तला बीच फूले कमल,कौन टोरबे जाय।
कै दो केवट नाव सैं,जाय टोर लै आय।।

बसकारे मै जब गिरै,पानी मूसलधार।
तला लबालब भर गये,नरवा भरे अपार।।

तला बावड़ी सब भईं,सासन के आधीन।
साप सपाई हो रई,चल रईं खूब मसीन।।

तरुणा खरे ‘तनु’
जबलपुर
[22/02, 9:56 PM] Rajeev Namdeo: जय बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -204
दिनांक -22-2-2025

बिषय- तला (तालाब)

प्राप्त प्रविष्ठियां :-

1
तीन तला तैरे तिजू , तुलसी तैरे तीस।
चार हते ते ऊ थले , गैरे ते छब्बीस।।
***
– वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़
2
पर नारी धन के हरैं ,जाबै कुल की नाक।
डूब तला में बे मरैं , जिनमें नइॅंयाॅं साक।।
***
-आशाराम वर्मा “नादान”, पृथ्वीपुर
3
तला तलइयां भर गये,नरवा नाले ऐन ।
बरसा भई चपेट कैं,लगे कुँआ सब दैन।।
***
शोभाराम दाँगी, नदनवारा
4
पार तला की फूट गइ,भइ ऐसी बरसात।
पानी घर घर में भरो,मुश्किल सबै दिखात।।
***
– मूरत सिंह यादव,दतिया
5
सला तला सी कला नइँ, रहे तला की माहि।
डूबत ऊखर सें बचै, जो जन जानें जाहि।।
***
-रामानन्द पाठक’नन्द’, नैगुवां
6
जीवन निर्मल हो सतत,ज्यों नदिया की धार।
तला बने न द्वेष कौ,हुइये बेड़ा पार। ।
***
-आशा रिछारिया ,निवाड़ी
7
नहीं तला में रै सकत, कर मॅंगरा सें बैर।
जैसें घुरवा घाॅंस सें,लड़ कें चाहत खैर।।
***
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”,हटा
8
मन चंगा जग में रओ, बने रयें सब ठाट।
आप सपरलव तला में, जान कुंभ को घाट।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु बडागांव झांसी
9
तला बीच पानी रुको, चलै नदी कौ नीर।
रुकबे में नइं फायदा, चल पथरन खौं चीर।।
***
-संजय श्रीवास्तव, मवई (दिल्ली)
10-
भरें लबालब जब तला,पानी बरसें यैन।
तब किसान खुश रात है,छाती में रत ‌चैन।।
***
-सुभाष सिंघई , जतारा
11
चलौ सपरवे ताल में,नल नइं आये आज।
पानू सबरौ बढ़ा गव,हमें धौवनें नाज।।
***
-रामसेवक पाठक “हरिकिंकर”, ललितपुर
12
तला-तलैयन में तके, फूले कमल गदूल।
पजे गिलारे में भले, बने उबर कें फूल ।।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव, भोपाल
13
डिड़यारइ बिन्नू विकट, हो रइ आज पराइ।
रो रो कें भर दव तला, बिछड़े बाप मताइ।।
***
– अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी
14
तला बीच गुरु द्रोण खोँ , मगर गुटकवे आव ।
धनुआँ लैकेँ पार्थ ने , तुरतइँ मार गिराव ।।
***
प्रमोद मिश्रा,बल्देवगढ़
15
नेह तला गैरे भरे,बैठे रइये पास।
रूप गगरियन पी गये,बुजी न मन की प्यास।।
***
– डॉ. देव दत्त द्विवेदी,बड़ामलहरा
16
तला बडो भोपाल को, रानाजू को काम।
बुन्देली साहित्य को, ऊंचो कररय नाम।।
***
-एम. एल. त्यागी,खरगापुर
17
तला किरतुआ पै डटो,दल बल सँग चौहान।
खोंटें कैसें कजलियां, चंद्रावलि हैरान।।
***
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव पीयूष, टीकमगढ़
18
तला सपरबे जात ते,बालापन मै यार।
सखन संग पैरत हते,चले जात ते पार।।
***
-तरुणा खरे ‘तनु’,जबलपुर
19
छोटे खोदो अब तला, सबखाँ मिलवै नीर।
सबके प्यासे कंठ खाँ, बँधो रये मन धीर।।


श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
20
तला तलैया पुखरियां, न्हाय न उतरैं पाप।
संगम में डुबकी लगा, मिटैं सभी संताप।।
***
– डॉ. रेणु श्रीवास्तव भोपाल
***
संयोजक- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक – जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
[22/02, 10:26 PM] Shobharam Dagi: शोभारामदाँगी “ताल”(तालाब)
बुंदेली दोहा
नदी बेतवा जामुनी,उतै धुबेला ताल ।
है प्रसिद्ध मउसानियाँ,रखे अस्त्र बहु ढाल ।। (०१)

महुबे जाओ जो कभउँ, है जो बेला ताल ।
“दाँगी” है इक खासियत,बड़े लड़इया लाल ।। (०२)

ताल बड़ौ भोपाल कौ,और तलइँयाँ जान ।
हरी-भरी धरती करें,”दाँगी” उपजे
धान ।। (०३)

नंदनवारा ताल सैं,होत सिचाई खूब ।
चना मटर पिसिया पजै,”दाँगी” के मनसूब ।। (०४ )
नरवा नाले ताल सब,भरे रबै जी गाँव ।
“दाँगी”जितै न तालहो,नईं सपरबै ठाँव ।। (०५)

ताल बँदा हर गाँव में ,हल्के बड़े मजोल ।
“दाँगी”ये सरकार
को,खाबै कोलइ कोल ।। (०६)

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी “इन्दु”नंदनवारा जिला टीकमगढ़

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