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15 Oct 2021 · 4 min read

दस्तावेज बोलते हैं (शोध-लेख)

दस्तावेज बोलते हैं
【नवाब रजा अली खाँ के चित्र वाला रजिस्ट्री-पत्र दिनांक 10 दिसंबर 1962】

रजिस्ट्री अर्थात बयनामे के पुराने दस्तावेज अपने आप में बहुत कुछ बताते हैं । इससे उस समय की भाषा ,मोहल्लों के प्रचलित नाम ,व्यक्तियों का संपूर्ण परिचय देने का तरीका पता चलता है ।

रजिस्ट्री-पत्र में वैसे तो काफी कुछ लिखा रहता है । लेकिन क्या चीज महत्वपूर्ण है ,इसको दस्तावेज-लेखक अलग से महत्व देते हुए लिखता है । इससे पता चल जाता है कि किस बात का दस्तावेज-लेखन में अधिक महत्व रहता है । रजिस्ट्री के दस्तावेज सरकार की मोहर के छपे हुए होते हैं । इनसे तत्कालीन शासन का भी पता चलता है। राजाओं और नवाबों की रियासतों में बयनामे अर्थात रजिस्ट्री के पत्र राजा महाराजाओं के चित्रों के साथ छपे हुए होते थे ।

आइए 10 दिसंबर 1962 को रामपुर में हुए एक रजिस्ट्री-पत्र का अध्ययन किया जाए । यह रजिस्ट्री उस जमीन की है जिसे मेरे पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ ने टैगोर शिशु निकेतन के लिए कुॅंवर लुत्फे अली खाँ से खरीदा था । सर्वप्रथम तिथि को पुनः स्मरण किया जाए । तिथि है : 10 दिसंबर 1962 । रियासत का विलीनीकरण हुए एक दशक से ज्यादा बीत चुका है । हमारा ध्यान सर्वप्रथम एक सौ रुपए के स्टांप पेपर पर जाता है । इस पर अंग्रेजी में “रामपुर स्टेट” बड़े-बड़े शब्दों में अंकित है । अंग्रेजी में ही एक सौ रुपए को “वन हन्ड्रेड रुपीज ” लिखा गया है। संभवतः यही सब उर्दू में भी है । हिंदी में कुछ भी अंकित नहीं है । अतः नवाबी रियासत में संयोगवश ही सही हिंदी की अनदेखी पर दस्तावेज के माध्यम से प्रकाश पड़ जाता है । स्पष्ट है कि सरकारी कामकाज में रामपुर रियासत में हिंदी उपेक्षित थी ।

स्टांप पेपर के शीर्ष पर मेरे अनुमान से रामपुर रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खाँ का फोटो छपा है । अनुमान इसलिए क्योंकि उर्दू मैं समझ नहीं पा रहा हूं तथा अंग्रेजी या हिंदी में नवाब साहब का नाम कहीं अंकित नहीं है । चित्र सुंदर है । सिर पर बहुमूल्य मुकुट नवाब साहब पहने हुए हैं । अब हमें एक विसंगति जान पड़ती है जिसकी तरफ हमारा ध्यान जाता है । स्टांप पेपर अभी भी रियासत – कालीन चल रहे हैं अर्थात रामपुर कहने को एक नगर अथवा जिला है लेकिन “रामपुर स्टेट” शब्द का प्रयोग स्टांप पेपर में हुआ है । इससे पता चलता है कि पुरानी रियासतों को विलीनीकरण के एक दशक बाद भी रियासत अथवा स्टेट के रूप में देखने की परंपरा चल रही थी ।

रजिस्ट्री के दस्तावेज में स्टांप पेपर पर मोहल्लों के लिखे हुए नाम महत्वपूर्ण होते हैं । 1962 में कौन सा मोहल्ला किस नाम से प्रचलित था ? – रजिस्ट्रीपत्र इस पर प्रकाश डालता है। समीक्ष्य दस्तावेज में “कूँचा लंगरखाना” मोहल्ले का नाम अंकित है अर्थात उस समय यह मोहल्ला जहां की जमीन-जायदाद खरीदी-बेची जा रही है ,वह कूँचा लंगरखाना नाम से प्रसिद्ध था । धीरे-धीरे स्थिति बदली और अब यह स्थान “पीपल टोला” नाम से जनता के बीच मशहूर है । “गली लंगरखाना” छोटे-से क्षेत्रफल में पुकारे जाने की दृष्टि से सिमट कर रह गई है।

खरीदार के रूप में मेरे पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ का नाम दस्तावेज-लेखक ने आदर पूर्वक “श्रीमान लाला राम प्रकाश जी” लिखा है । “मैनेजर टैगोर शिशु निकेतन” इसके आगे विशेषण के रूप में अंकित है ।

पिताजी के निवास स्थान को “मोहल्ला कूँचा लाल बिहारी” नाम से लिखा गया है । इससे स्पष्ट रूप से इंगित होता है कि 1962 में हमारा मोहल्ला “कूँचा लाल बिहारी” कहलाता था । वर्तमान में इस मोहल्ले का नाम “कूँचा परमेश्वरी दास” प्रयोग में लाया जाता है तथा वोटर-पहचानपत्र और वोटर-लिस्ट कूँचा परमेश्वरी दास मोहल्ले के नाम पर ही बनती है । कूँचा लाल बिहारी नाम के किसी मोहल्ले का अस्तित्व अब संभवतः लोगों की याददाश्त में भी नहीं बचा है । मगर दस्तावेज इतिहास की कहानी स्वयं कहते हैं और उनमें इतिहास का सत्य प्रकट होता है ।

दस्तावेज-लेखक ने जायदाद बेचने वाले महानुभाव का नाम ,मोहल्ला तथा धनराशि गहरे काले रंग की लिखावट में लिखा हुआ है। इसमें जो काली स्याही प्रयोग में लाई गई है, वह इतनी अच्छी है कि आधी सदी से ज्यादा समय बीतने के बाद भी ऐसा लगता है ,मानो कल ही लिखा गया हो।

जगह का क्षेत्रफल फुट में दिया गया है न कि मीटर में । इस दस्तावेज में हम तारीखों को “हिंदी के अंको में” लिखा हुआ पाते हैं । सात का हिंदी-अंक दो स्थानों पर अलग-अलग तरीके से लिखा गया है । इससे उस समय अंको के लिखे जाने के तौर-तरीकों पर प्रकाश पड़ता है। समूचे दस्तावेज में एक से नौ तक के प्रायः सभी हिंदी-अंकों का प्रयोग हुआ है ।

दस्तावेज लेखन की लिपि देवनागरी है । लेकिन भाषा पर उर्दू का गहरा असर है । ऐसा जान पड़ता है मानो उर्दू-लेखन को देवनागरी-लिपि में लिख दिया गया हो। इससे 1962 के दौर में शासकीय और लोकजीवन में भाषा के प्रयोग का पता चलता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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