तारुण्य वसंत

स्वर्ग से सुंदर भूमि भारत
ऋतुराज वसंत का श्रृंगार
सुंदर मोहक छवि निराली
वन उपवन निर्झर मतवाली
मास फरवरी मार्च है प्यारी
मिलन एकता भावों का रंग
उमंग उल्लास माधुर्य राग
वसंत यौवन की निखारती
कोयल की कू भौरें की गुंज
रंग हरियाली छटा बिखेरती
आम्रवृक्ष मंजर मुकुट मधु
पीली सरसों फूल निराली
कलकण्ठी कोकिल मस्ती
उन्मत्त मादक गीत सुनाती
रंग विरंगें मधुवन में तितली
खुशबू की संदेश पहुंचाती
भरी पिचकारी रंग गुलालों
झूमे नर नारायण अवतारी
ऋतुराज वसंत की सरताज
कामुक कामदेव सुत वसंत
वसुधा पे अवतार श्रृंगारिणी
सौंदर्य प्रकृति की सुहागिनी
लहलाते पौधे फूलों की घाटी
पकी फसल खेत और क्यारी
झूमें नाचे जौ गेहूँ की बाली
हर्षित निर्मल कृषक वादी
ज्ञानदा माता सरस्वती देवी
वसंत पंचमी की अवतारिण
सृष्टिकर्ताब्रह्मा के ब्रह्म दिवस
कण कण भू छवि प्रसारिणी
तारुण्यमय सज धज मदमस्त
प्रकृति की अनंग सुत वसंत
देशभक्त नवयुवक भगत सिंह
प्रेरणा लिए ऋतुराज वसंत की
समर कूच को गा उठे आजादी
के परवाणों ने : ? ? ? ? ? –
“मेरा रंग दे वसन्ती चोला
माए ! रंग दे वसंती चोला
जिस पर रंग चढ़े ना दूजा हो
माए ! रंग चढ़े ना दूजा माए
कलतक जो चिंगारी थी ..
वो आज बनी है शोला माए
मेरा रंग दे वसंती चोला ” ॥
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