*प्रभात-वंदन*

#लघुकविता-
■ ये मुझे लगता नहीं है।।
[प्रणय प्रभात]
साथ चलते हैं किनारे,
हर घड़ी बाँहें पसारे।
जोश का संचार करते,
ये सतत गतिशील धारे।।
वेग ख़ुद देती हवाएं,
और लहरें हैं सहेली।
ये मुझे लगता नहीं है,
नाव है मेरी अकेली।।
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