श्रीजल सा अश्रु
तुम्हारे आलिंगन में कहीं सहारे हैं
लेकिन मेरे पास तो मैं भी नहीं…..
सोचती हूं सांझ सपन लिए आज ,
दूर तलक मैं होकर भी मैं नहीं…
तप त्याग किया तब कुछ वार दिया ,
तुम संग हंस, तुम संग रो ,अपना मन मार लिया,
अस्तित्व ख्वार किया ,
निर्वाण के पड़ाव में ऐब निकालते हो
तुम वही तो हो मिलते समय खूबियां गिनवाई मुझमें
छीन लिया मुस्काने का सबब पर आंसू तो मेरे चंद सपनों में मस्त मगन है
जीवन की सारे रंग यही है
जिसके साथ मिले बस उसी रंग दिखे
अश्रु मेरा साफ निर्झर बरसता
निर्मल निरंतर मानो हो श्रीजल