★अदालत★
सबसे सुंदर मेरी शाम है
बात बड़ी नहीं ये आम है।
क्यों करूं मैं इतनी चिंता
ये तो तुम्हारा काम है।
पूजा में क्यों फूल चढ़ाऊं
आजकल लगता दाम है।
पुजारी देखकर ऐंठा है,
वो इसलिए तो बदनाम है।
क्यों नही आते हो अदालत,
सच्चे भी जहां नीलाम है।
बहुत परेशान हूं चींटियों से,
किसने कहा की लगाम है।
गिरफ्त में गर्दन किसकी है,
“जिज्ञासु” कैसा अंजाम है।
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कवि- गजानंद डिगोनिया ‘जिज्ञासु’