बहुत कुछ गँवाते , लगातार चलते !

गज़ल ,
बहुत कुछ गँवाते , लगातार चलते !
बिछड़ते सभी साथ , बेकार चलते !! ..1
💦
ग़मों को यहाँ कौन , कब सींच पाया !
निकल जाते हैं लोग , नाचार चलते !!..2
लहू की ये रंगत को , बदला सा देखा !
गये घर से आश्रम , समाचार चलते !! ..3
फिरा लेते हैं आँख , जाने वो कैसे !
कुड़ी को गिरा कर के , असरार चलते !!….4
बहे अश्क़ वापस , नहीं जा सके हैं !
छिपा कर रखो इनको ,बाज़ार चलते !!…5
दिखा दे वो मंज़िल , निशां राह के सब !
क़दम थक गये ‘नील’ , असफ़ार चलते !!…6
✍नील रूहानी …नीलोफ़र खान ..
असरार _भेद / असफ़ार _ यात्रायें/ नाचार _ निर्बल/
कुड़ी _ बेटी ।