Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Mar 2024 · 1 min read

किसान

***किसान***
ना सर्दी तके ,
ना गर्मी मे तपती धूप
कहे अन्नदाता जग ,
उसे इसी के फलस्वरूप
पर ये कैसी कुदरत की है महिमा
प्यारे इस कर्मबीर कृषक पर
है हत्याचार ये कैसा
जो रहा इसे हर कोई लूट ।
कभी प्राकृतिक आपदा मारे
कभी सरकार की महंगाई
कर्जा लेकर फसल उगावे
लौटकर फिर भी कीमत ना आवे
ऐसे में क्या करे अन्नदाता
आके तू ही बता विधाता
क्या करे तेरा ये कर्मवीर सपूत ।।
हिम्मत फिर भी ना ये हारे
कर्जा लेकर भी बेचारा
डटा रहे मैदान में कूद
कर परिश्रम प्रतिदिन ये सोचे
अबकी फसल से कर्ज चुकाके
फिर बेटी का व्याह रचाउगा
शादी व्याह तो सब हो जावे
पर ना पाये कर्जा छूट
ये कुदरत तू ही बतलादे
कैसे हो बिन कर्ज
तेरा ये वीर सपूत
****************************
दिनेश कुमार गंगवार

Loading...