व्याकुल है मन,नम हैं नयन,

व्याकुल है मन,नम हैं नयन,
रुदन करता अंतर्मन…
मौन है स्वर मेरा,भीतर चलता अन्तर्द्वंद।
कब तक सहना!
क्यूँ चुप रहना!
यहाँ-वहाँ नज़र दौड़ाई…
कहीं न कोई परछाई भी पाई,
किसने फिर ये स्वर लहरी सुनाई!
अंतर्मन ने फिर से है पुकार लगाई,
मैं तेरे भीतर की शक्ति,तेरा ही वो दबा हुआ स्वर…
जिसको स्वयं तू ही न सुन पाई!