लेखनी से आगे का स्त्रीवाद
बात बिगड़ी थी मगर बात संभल सकती थी
#रंगभूमि बलात् छल कमाती क्यों है
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
मायड़ भासा री मानता
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
Aaj kal ke log bhi wafayen kya khoob karte h
वैराग्य ने बाहों में अपनी मेरे लिए, दुनिया एक नयी सजाई थी।
मेरी एक बार साहेब को मौत के कुएं में मोटरसाइकिल
आंसुओं से अपरिचित अगर रह गए।
चिंता, फ़िक्र, कद्र और परवाह यही तो प्यार है,
ना मैं निकला..ना मेरा वक्त कही..!!
सच रेत और रेगिस्तान का भी मतलब होता हैं।
कृष्ण भक्ति में मैं तो हो गई लीन...
कामयाबी के दरवाजे उन्हीं के लिए खुलते है