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4 Feb 2024 · 2 min read

सेवानिवृत्ति

घाट-घाट का पानी और देखी जगह-जगह की मिट्टी,
अनुभवों और अहसासों की शृंखला, कुछ खट्टी कुछ मिठ्ठी |

बैंकर होना लगा कभी जैसे हो प्रतिभा बहुमुखी,
बड़े प्रोजेक्ट्स का लागू करना उपयोग कर प्रतिभा इंजिनियर सरीखी |

कभी ब्याज का गणन एवं बड़े-बड़े तुलन पत्रों का अध्ययन,
हर माहौल आस-पास का कर गया अनुभव और अहसास संपन्न |

रास्ते कभी कठिन कभी आसान से लगे,
और लोग कभी अपने कभी अनजान से लगे |

अनुभव, सजगता एवं सतर्कता के अनुपालन का,
सामाजिकता को छोड़ मशीनी-जीवन के संचालन सा |

देखा कभी घोड़ों को भी अभाव होता घास का,
और कभी गधे भी देखे मजा लेते च्वनप्राश का |

यह तो हर दौर में रहा है नया हो या पुराना,
कुपात्र का पाना और अधिकारी का वंचित रह जाना |

सामर्थ्य नहीं दिखाया तो फिर हाथ कुछ नहीं आया,
कभी-कभी ‘डार्विन’ का सिद्धांत जैसे जीवंत होता पाया |

अनाड़ी के सामने कभी तर्क भी काम नहीं करते,
और कभी-कभी कुतर्क के आगे भी लोग देखे पानी भरते |

होता देखा संतुलन का आंकड़ा कभी ऊपर कभी नीचे,
मिलते देखे पात्रों को कांटे और कुपात्रों को फूल-बगीचे |

यहाँ तो हर एक को अपना बग़ीचा खुद ही सींचना है,
अवगुणों से दुराव और गुणों को अपनी ओर खींचना है |

गिरगिट को शर्मिंदा कर दें लोग ऐसे रंग बदलते देखे,
लीगल टेंडर हाथ मले और खोटे सिक्के चलते देखे |

सच्चाई और ईमान हमने युगों-युगों तक चलते देखे,
बेईमानी पर पले बढे जो तिल-तिल करके गलते देखे |

आज सही जो लगते मानक वक्त के साथ बदलते देखे,
अथक श्रम और सतत प्रयास हमने सुफलों में ढलते देखे |

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