साध्य प्रवर्तन
///साध्य प्रवर्तन///
अहे! सुमन तू हास्य करता,
मधु स्वपनों में खोता कहां।
लेकर चलना था कृत सुधा,
आस संबल सरसता जहां।।
खिले पानी हास्य पुटों पर,
जल लहरी सा लहराता जा।
बने सुमन सातत्य जगत में,
ले मधु सौरभ सरसाता जा।।
करती ये प्रात भर भरकर,
अमन भरा उर्जित उत्साह।।
प्रेम सरोवर निमग्न विश्व के,
चल लेकर वह अमृत राह।।
उठता विश्व उदधि उस पार,
अमृत धारा का अभंग मेल।
प्रेम गीत का साध्य प्रवर्तन,
कर प्रवर्तित देवोपम खेल।।
चल सतत तू बन सरस,
स्नेह प्रेम बरसाता जा।
पुलक गात नवल लिए,
मधु सौरव बिखराता जा।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)