ख़्याल आते ही क़लम ले लो , लिखो तुम ज़िंदगी ,
ज़िन्दगी से नहीं कोई शिकवा
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
किसी विशेष व्यक्ति के पिछलगगु बनने से अच्छा है आप खुद विशेष
*भेदा जिसने है चक्रव्यूह, वह ही अभिमन्यु कहाता है (राधेश्याम
राह मुझको दिखाना, गर गलत कदम हो मेरा
सत री संगत
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बात हुई कुछ इस तरह, उनसे मेरी यार ।
नाम कमाले ये जिनगी म, संग नई जावय धन दौलत बेटी बेटा नारी।
परधानी चुनाव के मजा , दोसर कवनो चुनाव में ना मिली
हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का;
शिव शंकर तू नीलकंठ -भजन-रचनाकार:अरविंद भारद्वाज
ना ढूंढ मोहब्बत बाजारो मे,
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'