स्कूल का पहला दिन
स्कूल का पहला दिन
बड़ा बोझिल सा लगा
मन में कई सवाल लिए
विद्यालय में प्रवेश किए।
हर तरफ थी शोर की आवाजें
तभी मूंछ वाले अध्यापक गरजे
डर से था मैं थोड़ा कम्पकंपाया
तभी पापा ने हाथ आगे बढ़ाया।
जैसे ही बढ़ा कक्षा की तरफ
मास्टर जी की नजरें तीखी थी
अजनबी चेहरों के बीच
मेरी पहचान अभी अधूरी थी।
घंटी बजी तो कक्षा छूटी
अजनबियों संग बात खुली
धीरे धीरे सब डर भी भागा
मित्रता की नई सौगात मिली।
अब स्कूल अपना सा लगता
हर दिन नया सपना सा लगता
सीखने की एक ललक सी लगी
आगे बढ़ने की भी ठनने लगी।
किताबें भी अब मित्र बन गई
मास्टर जी की बातें प्रेरणा बन गई
पढ़ना, लिखना, समझना सीखने लगे
प्रतियोगिता कर प्रथम, द्वितीय आने लगे।