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25 Mar 2025 · 1 min read

मुझको मेरा गाँव(दोहे)

तपती गर्मी में सुखद,लगे पेड़ की छाँव।
मन को भाते हैं बहुत,नदी, तलैया नाँव।।

प्यारा लगता है बहुत,मुझको मेरा गाँव।
सुन्दर खेतों की डगर,शीतल पीपल ठाँव।।

दूध दही रबड़ी मधुर, माखन रोटी साग।
सुनने को मिलता यहाँ,रोज अनोखा राग।।

मिलजुल कर रहते सभी, जैसे हों परिवार।
हँसी खुशी से है मने,गाँवों में त्यौहार।।

पशुपालन खेती कृषक, जीवन का आधार।
अच्छी फसलों से सभी,होते सपनें साकार।।

काँधे पर हल धार कर,कृषक चले निज खेत।
बहा पसीना देह का,ढेला करते रेत।।

हरी-भरी धरती दिखे,पवन चले झकझोर।
कूँजे कोयल डाल पे,वन में नाचे मोर।।

फसलें होतीं खेत में,तकें डाल कर खाट।
गृहणी लेकर खेत में,जाती आलू चाट।।

फसलें कटकर खेत से, आतीं हैं जब द्वार।
भरा अन्न से देख घर,होती खुशी अपार।।

बीच गाँव के है बनी, सुन्दर सी चौपाल।
हँसी ठहाके हों जहाँ,मचता रोज धमाल।।

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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