2122 1122 1122 22

2122 1122 1122 22
बाद तुम मुद्द्त मिले हो तो किधर जाओगे
हम-सफ़र अब न बहाने से मुक़र जाओगे
#
लोग कहते है ये दुनिया बड़ी जालिम होगी
तुम कहीं जाके बुलंदी पे ठहर जाओगे
#
तुम मना लोगे ख़ुशी मेरी ही बर्बादी से
पर मुकद्दर का लिख़ा देख सिहर जाओगे
#
सिलसिला अपनी मुहब्बत का चलेगा कैसे
एक तरफा की नुमाइश में बिख़र जाओगे
#
सोच पर क़श्ती किनारे कहाँ लगती होगी
एक वो ख़ास जगह सोचो उतर जाओगे
#
सुशील यादव दुर्ग (cg)
7000226712