माँ का संघर्ष

सुबह की पहली किरण से पहले उठती है माँ,
थके पाँवों से दिनभर लड़ती रहती है माँ।
पसीने को मुस्कान में छुपा लेती है माँ,
हर दर्द को हँसी में सजा देती है माँ।
रोटी गोल हो या ज़िंदगी की राह पर,
हर मोड़ पर देती है हमें सलाह माँ।
अपने सपनों को पीछे छोड़ आई है माँ,
हमारे भविष्य के लिए खुद को मिटाई है माँ।
कभी भूखी सोई, कभी खुद को भूली है माँ,
हमारी एक हँसी में जीवन का अर्थ ढूँढ डाला है माँ।
कपड़ों में पैबंद हो या दिल में पीर हो,
उसने कभी न शिकायत की, न कोई शिकवा किया है माँ।
कर्ज़ों की छाया में भी ढाल बन खड़ी रही रहती है माँ,
हर आँधी को अपनी ममता से झेलती रहती है माँ।
उसका हर एक-एक बलिदान एक गाथा है,
जो अनकही, मगर सच्ची कथा है मेरी माँ।