पशुस्वरूप मानव

मानव की असंवेदनशीलता की
पराकाष्ठा हो गई है ,
हृदयविदारक घटना जब छोटी- मोटी
घटना नामित हुई है ,
अपनों के खोने का दर्द
कोई अपना ही समझेगा ,
कठोर पाषाण हृदय उसे
जीवन से मुक्ति ही कहेगा ,
अंधभक्ति में डूबा मनुष्य
मानव को पशु तुल्य ही समझेगा ,
क्योंकि वह अंधश्रृद्धा के अनल में अपने अंतस स्पंदित मानवता को जलाकर खाक कर चुका है ,
उसे पता नही है कि वह अपना मानव स्वरूप खोकर कब का पशु स्वरूप बन चुका है।