हाँ, मैंने भी जमाना देखा है
(शेर)- माना कि तुम बड़े हो,अमीर हो, तुमने तजुर्बा देखा है।
किस प्रकार के लोग है जमीं पर, तुमने जमाना देखा है।।
लेकिन मैं भी तो रहता हूँ इसी जमीं पर, इस दुनिया में।
तुम्हारे बराबर ना सही, लेकिन मैंने भी जमाना देखा है।।
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मैं नहीं यह कह रहा हूँ , कि तुमने नहीं देखा है जमाना।
लेकिन तुम भी नहीं कह सकते, मैंने नहीं देखा है जमाना।।
मैं नहीं यह कह रहा हूँ—————————–।।
मैं नहीं जन्मा हूँ महल में, ना मैं कोई धनवान हूँ।
मैं तो छोटे से गाँव के, एक मजदूर की सन्तान हूँ।।
गाँव की मिट्टी- खेतों में, मेरा बचपन गुजरा है।
जहाँ रूखा-सूखा खाकर खाना, मैंने देखा है जमाना।।
मैं नहीं यह कह रहा हूँ————————।।
सरकारी स्कूल में पढ़कर, सरकारी मुलाजिम बना हूँ।
मजदूरी भी की है मैंने, कामयाब मैं भी यहाँ बना हूँ।।
रंगों की तरहां अलग-अलग, दिलवाले मैंने देखें है।
मतलब के लिए बदलते रिश्तें, मैंने देखा है जमाना।।
मैं नहीं यह कह रहा हूँ————————।।
कौन आत्मा से है पवित्र, दिखावा कौन कर रहा है।
कौन देश के लिए जी रहा है, कौन खुदा बन रहा है।।
कौन लूट रहा है चमन को, बहुरूपिया यहाँ बनकर।
हाँ, मैंने भी जमाना देखा है, किसका कैसा है फ़साना।।
मैं नहीं यह कह रहा हूँ————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)