मेरी कलम

चापलूसी रास इसको नहीं आती
जी हुजूरी से बहुत दूरी बनाती है।
करती रहती ईमान-धर्म की बातें
अंध तम पर प्रभा दीप जलाती है।
रोजी रोटी कागज़ पटल पर लाती
समस्या को सत्ता तक पहुंचाती है
करती मुकाबला गलत का डटकर
शान्ति-संदेश घर-घर में पहुंचाती है।
नारी उत्थान और महिला सम्मान
की बातें सब मंचों तक ले जाती है
देशद्रोहियों की हरकत विरूद्ध यह
अपनी समस्त शक्ति आजमाती है।
समस्या बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की
पदासीन सत्ताधीशों तक पहुंचाती है
जहाँ लाज-हया लुटाता है अबला का
अजब गज़ब का शोरगुल मचाती है।
अधर्म अनीति पर चुप नहीं बैठती
ठकुरसुहाती देख अति अकुलाती है
दलित शोषित,गरीबों की राहत हेतु
सड़क से संसद तक गुंज मचाती है।
देख रीति रिवाज कोर्ट कचहरी की
व्यथा से बहुत व्यथित हो जाती है
देख मंद गति मुकदमा का निष्पादन
न्याय प्रणाली पर अंगुली उठाती है।
बैठाती नहीं कभी तालमेल सत्ता से
अनीति से इसकी नहीं बन पाती है।
गढ लेती है यह दोहा छंद कुछ ऐसा
लोगों के असली रूप दिखलाती है।
कदाचित कलम मेरी कुछ सुन लेती
बहुत झंझटों से बिल्कुल बच लेती
पी लेती अगर थोड़ा अपमान गरल
पद-प्रतिष्ठा सह सत्ता-सुख गह लेती।
पर कलम मेरी मेरी कुछ नहीं सुनती
अलापती रहती है अपना राग पुराना
कहती है दिखलाकर राह सच्चाई की
सभी का डर-भय है बहुत दूर भगाना ।