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27 Dec 2024 · 1 min read

माना दो किनारे हैं

माना दो किनारे हैं
मग़र नदी तो है
जीवन में कोलाहल
कलकल तो है.

जलतरंग सी सुबह
रंगमहल सी शाम
आओ कुछ रच लें
इस जीवन के नाम।।

सृजन का सरोवर
कमलपुष्प सारे
मिलजुल कर रचें
प्रणय गीत प्यारे।।

शक्तिमान से शक्ति
शक्ति से शक्तिमान
प्रदीप्त दोनों ही हैं
दीपक तेल समान।।

शब्द यात्रा में भला
कौन कब थका है
विचारों से आचरण
कब यहाँ तुला है।।

आओ, रच लें हम
मन की गीतिकाएं
छोड़ सारी ग्रंथियां
गूंजे जग में ऋचाएं।।

सूर्यकांत

Language: Hindi
27 Views
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