*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
- भाईयो के हाथो में कुछ भी नही भाभीया है सरताज -
गरीब और बुलडोजर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
टूटते पत्तो की तरह हो गए हैं रिश्ते,
*छाया प्यारा कोहरा, करता स्वागत-गान (कुंडलिया)*
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—2.
जमाने की नजरों में ही रंजीश-ए-हालात है,
पुरानी यादें, पुराने दोस्त, और पुरानी मोहब्बत बहुत ही तकलीफ
दबी जुबान में क्यों बोलते हो?
Sometimes people think they fell in love with you because t
नहीं टिकाऊ यहाँ है कुछ भी...