खट्टे अंगूर

खट्टे अंगूर
सुस्त लोमड़ी लोभी भारी।
ठगती घूमती जंगल सारी।
खाने की , शौकीन बहुत थी।
आदत की ,रंगीन बहुत थी।
ऐठ बहुत थी, उसके अंदर।
बात में उसके, थे बवंडर।
नही चाहती दिखे बेचारी।
सबपे रहती बन के भारी।
एक बार था गर्म महीना।
ढूंढ रही थी खाना पीना।
दूर दिखे अंगूर लगे थे।
सुन्दर थे औ पके पके थे।
मुँह में उसके आया पानी ।
धूम मचाई दौड़ी फानी।
अंगूर उसके मुँह न आया।
कहने पर खट्टा बतलाया।
“प्यासा”