sp71 हसरत ही नहीं
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हसरत ही नहीं जब जीने की अरमान सजा कर क्या होगा
बेवफा हो गए हैं जब वह तो वफा निभा कर क्या होगा
हम शिकवे करें या मिट जाएं पत्थर हो सकता मोम नहीं
जब आह का कोई असर नहीं तो नीर बहा कर क्या होगा
दे दी है सजा हमने खुद को जीते जी ही मर जाने की
जो गुजरेगी हम जानते हैं दिल को भरमा कर क्या होगा
हम जाएं कहां बतलाए कोई हम राह भी भूले घबरा कर
जब अपनी कोई मंजिल नहीं तो रास्ता पाकर क्या होगा
हर ओर अंधेरा छाया है जीवन में मेरी तन्हाई का
ना मिटा अंधेरा जीवन का तो दीप जला कर क्या होगा
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब