धड़कने अब मेरी मेरे बस में नही

धड़कने अब मेरी मेरे बस में नही
दिल जिसे ढूंढता वो न आए नजर
दिल तड़पता है आंखे होती है नम
दिल जिसे खोजता वो न आता नजर
आज अपने ही अपनो को देते दगा
जख्म सीने में लेकर तू जाए किधर
मुस्कुराना मेरे दिल को भाता नही
“कृष्णा”पागल हुआ कुछ न आए नजर
✍️ कृष्णकांत गुर्जर