उन्वान,

तिल तिल कर मिट रहा है, वजूद मेरा!
चारो तरफ मँडरा रहा है,बुढापे का घेरा!!
पता नही कहा है,बचपन की अठखेली?
तीनो प्रहर घर बाहर,बस यारो का डेरा!!
जोशे जवानी काम काज की भागमभाग,
भूले खाना-पीना ,बीमारियो ने आ घेरा!!
पर जब पता चला यूरिक एसिड बढा है,
काम तमाम किया,पथरी,गठिया ने घेरा!!
मैने हिम्मत नही हारी कवियो से की यारी,
गोष्ठी,कविसम्मेलन से मित्रमडंली का फेरा!!
जवानी वाली व्यस्तता आने जाने दौडधूप,
जारी है साहित्यप्रेम की गंगा ने डाला डेरा!!
जीवन जीने का मिल गया नया मकसद,
ऊर्जा स्फूर्ति से बीमारियो ने भी मुह फेरा!!
अपने जीवन को दीजिए फिर नए उन्वान,
भूल जाईए बुढापा क्या वो तो मन का हेरा!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट.कवि,पत्रकार
,202 नीरव निकुजं,सिकंदरा,आगरा -282007
मो:9412443093