ग़ज़ल…
ये ज़िंदगी पतझड़ कभी मधुमास लगती है मुझे
दिन-रात जैसा इक ग़ज़ब अहसास लगती है मुझे//1
आँसू कभी देती हँसा आसान है मुश्क़िल कभी
पल-पल बदल ये रूप आती रास लगती है मुझे//2
हँसते हुए गाते हुए चलता चले जो राह में
उसके लिए तो ज़िंदगी बिंदास लगती है मुझे//3
तुम जो कहो मेरे लिए फूले-फले हर बात वो
रब से जुड़ी तेरी कही अरदास लगती है मुझे//4
देकर ख़ुशी जो छीन ले उससे बचा दामन सदा
उससे बड़ी नीयत नहीं बकवास लगती है मुझे//5
हर हाल को समझे बिना देता दलीलें जो नहीं
ये ज़िंदगी उसका ज़ुदा अहसास लगती है मुझे//6
झुकता चले रोता चले खोता चले हर चैन जो
ये ज़िंदगी ‘प्रीतम’ कहे तब दास लगती है मुझे//7
आर.एस. ‘प्रीतम’