याद मुझको मेरे गांव की आ रही।
आम में मंजरी बौर की आ गयी,
ये वसंती हवा और महका रही।
कोयले है मुदित डाल पर गा रही।
है सुगंधित हवा हर तरफ छा रही।
डालियां झुक रहीं, बालियां आ रहीं,
याद मुझको मेरे गांव की आ रही।
वन भरे हैं हरे मन भरे हैं भरे
फूल डालों पर मंडरा रहे भंवरें।
मधु भरे हैं मधुप मोहते नैन को,
मद भरी कोयले डाल पर गा रही
याद मुझको मेरे गांव की आ रही।
गांव की छांव सुंदर सुहानी लगी
बीती हैं बातें मुझको कहानी लगी,
फूली सरसों तो हंसती दिखी मेदिनी।
स्वच्छ नभ में स्मित दिखी चांदनी।
है ये यादें न मन से कभी जा रही।
याद मुझको मेरे गांव की आ रही।
✍️विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र