सँवारे थे तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म कभी मैंने

सँवारे थे तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म कभी मैंने
यहीं वो उंगलियां थी मैं जिन्हें कंघी बनाता था
-जॉनी अहमद क़ैस
सँवारे थे तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म कभी मैंने
यहीं वो उंगलियां थी मैं जिन्हें कंघी बनाता था
-जॉनी अहमद क़ैस